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कुछ शब्द बोए थे / रश्मि विभा त्रिपाठी

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जैसे अभाव के अँधेरे में
हो सविता!
खेतों में किसान ने
जब बीज बोए
तैयार करने को फसल
दिया था जब खाद- पानी
तो गेहूँ की सोने- सी बालियों की
चमक में
उसे ऐसी ही हुई थी प्रतीति,

मैं नहीं जानती मेरी भविता
मेरे अतृप्त जीवन ने तो
मन की
बंजर पड़ी जमीन पर
अभी- अभी कुछ शब्द बोए थे
भावों की खाद डालकर
अनुभूति के पानी से सींचा ही था
कि देखा-
कल्पवृक्ष- सी
वहाँ उग आई कविता।

और ऐसा लगा
मुझको जो चाहिए
जीने के लिए
मेरे कहने से पहले
पलभर में वो सबकुछ लाकर
मेरे हाथ पर रखने आ गए पिता।