भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम और तुम्हारे संशय / अनामिका अनु
Kavita Kosh से
Adya Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:05, 26 नवम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ‘तुमस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
‘तुमसे बात करनी है’
यह सीधी पंक्ति मौन की गढ़चिरौली में भला कैसे बच पाएगी?
‘तुम्हें देखना है’
यह सरल पंक्ति तुम्हारे संशय की नामदाफा में भला कैसे बचेगी?
‘तुमसे मिलना है’
साधारण-सी यह चाह तुम्हारी शंकाओं के सुंदरवन में एक दिन दम तोड़ देगी
अपनी सभी सरल चाहों को मैंने तुम्हारी क्लिष्टता के गुल्लक में डाल दिया है
गाढ़े वक़्त में तुम उनसे मुस्कान मोल लेना