वे बच्चे / अनामिका अनु
वे बच्चे जो पेंसिल छीलते रहते हैं
डस्टबिन के पास
जो कक्षा में होकर भी अलग-सी दुनिया
में होते हैं
ख़ुद से बातें करते
दूसरी दुनिया के चक्कर काटते ये बच्चे
अनछुए रह जाते हैं उस ज्ञान से
जिसे हम हर रोज़ परोसते हैं
प्रश्न की दीवारों को ताकते ये बच्चे
कहाँ पार कर पाते हैं परीक्षा की परिधि
केन्द्र से अछूते
आत्मलीन इन बच्चों की आँखों में क्या होता है?
चौकोर भोर जिसकी चारों भुजा एक सी
सब उसे वर्ग कहते हैं
ये दृष्टि
इनके पेट में एक उबाल होता है
आँखों में बेचैनी
पानी की बड़ी बड़ी घूँट पीते
उल्टे डी, बी ,उ ,अ लिखते
हर गोल से भागते ये बच्चे
परिधिहीन दुनिया की सैर पर होते हैं
आसमान सबका होता है
ये सच भी है और
तय भी
ये बच्चे अपना आसमान स्वयं गढ़ते हैं
फिर उन पर हीरे-सा चमक उठते हैं
इनके आसमान में न चाँद होता है, न बादल
छूटते सपनों के ये बाज़ीगर
खरीद लाते हैं कबाड़ के मोल में हीरा
और फिर लिखी कही जाती हैं
इन पर अनगिनत कहानियाँ
ये जो धूप का टुकड़ा लाते हैं
वह भी उजाले का हिस्सा है
इनकी कोरी कापियाँ दस्तक है
हमारे ज्ञान कोष पर
बड़ी-बड़ी आँखों वाला एबिन
झूठ नहीं कहता
वह सपने नहीं देखता
सपने उसे देखते हैं