भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काबुल की तस्वीर / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:42, 24 दिसम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थोड़ी ही तो सुधर सकी थी
काबुल की तस्वीर
तालिबान तब तक ले आया
वही पुरानी पीर

भग्न हुईं मूर्तियाँ बुद्ध की
धम्म रह गया मूक
मौन तथागत देख रहे हैं
काँधे पर बंदूक

शांति, न्याय, सद्भाव सभी को
जकड़े है जंज़ीर

उम्मीदों का सूरज घायल
हर पल रहा कचोट
मन के घाव छुपा पाएगी
क्या बुर्के की ओट

अब भी धृतराष्ट्रों के आगे
द्रोपदियाँ बेचीर

महाशक्तियाँ देख रही हैं
फिर सबकुछ चुपचाप
बारूदी गंधों पर भारी
है दुनियावी ताप

‘जो तन लागे सो तन जाने’
कौन यहाँ गंभीर