भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोने में बैठी है मुनिया / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 24 दिसम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कोने में बैठी है मुनिया
इस नवराते में
देख रही वह
व्यवहारों में आया है अंतर
छोटी बहना के हाथों में
बँधा कलावा है
छुटकी के सिर पर चूनर है,
हलवा, मावा है
रुपये और खिलौने लेकर
आयी है वो घर
मुनिया चूड़ी चाह रही है,
माँ से रूठी है
उसको कुमकुम नहीं लगाया
माँ भी झूठी है
बदल गया क्यों उसकी ख़ातिर
कंजक का अवसर
‘कन्या पूजन की अधिकारी
तू अब नहीं रही’
माँ ने उससे बात अचानक
क्यों यह आज कही
सोच रही क्या बदल गयी मैं
रजस्वला होकर।