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मंद-मंद मुस्काये पेड़ / गरिमा सक्सेना

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बड़े दिनों में भीगे
और नहाये पेड़
मंद-मंद मुस्काये पेड़

इक अरसे से
धूल भरे थे चित्र सभी
दिखे नहीं थे
बहुत दिनों से मित्र सभी

कोमल स्पर्शों का
ज्यों अपनत्व मिला
गले लगाकर
बूँदों को हर्षाये पेड़

शीतलता के
जागे छन्द हवाओं में
नयी ताज़गी
लौटी पुन: शिराओं में

मैले वसन उतारे
मन की थकन मिटी
पहले से ज़्यादा ही अब
हरियाये पेड़

खड़े रहे
होकर मेघों-मल्हारों के
लौटे दिन फिर
हँसी-ख़ुशी, त्योहारों के

पड़े थपेड़े लू के कितने,
भूल गये
चौमासे के गीत सुने,
लहराये पेड़।