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ये भयानक सियाह रात निकाल / ‘अना’ क़ासमी

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ये भयानक सियाह रात निकाल
दौलते हुस्न की ज़कात निकाल

उसने हाँ कर दी है तो ऐ दुनिया
क़ौम की बात कर, न ज़ात निकाल

हज़रते-ख़िज्र रास्ता न बता
इस अंधेरे में अपना हाथ निकाल

हाथ लग जाए इस फ़साना और
हर कहानी में ऐसी बात निकाल

ज़िक्रे फ़रहादो-क़ैस रहने दे
शाख़े-आहूपे मत बरात निकाल

ख़ुद इबारत वजूद खो बैठे
इतने ज़्यादा न अब नुक़ात निकाल