भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली / दिनेश शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 25 जनवरी 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वराह पुराण अर लिंग पुराण
दोनूआं म्है लिख्या पावै
फागण की पणवासी के दिन
होली परब मनाया जावै

बैठी आग होलिका जलगी
वरदान रहग्या धरया बतावैं
प्रह्लाद का कुछ बिग्डया कोन्या
लाख ज़ुल्म बाप था ढावै
फागण की पणवासी के दिन

बाल ना बांगा हो सज्जन का
सदा पालनहार बचावै
इसे ख़ुशी म्है लोग लुगाई
होली सांझ के बख्त जलावैं
फागण की पणवासी के दिन।

चैत बदी दिन धुलेंडी का
बड़े-बुजूर्ग मनाते आवैं
देवर-भाभी जीजा-साली
सब मित्र धूम मचावैं
फागण की पणवासी के दिन

पाणी गुलाल हल्दी अर चंदन
रंग ओरै-धोरै बिछ जावैं
गारा-माटी काला तेल
इब किते-किते टोह्या पावै
फागण की पणवासी के दिन

सारे होज्याँ काले पीले
सब रंगां म्है रंगणा चावैं
ले कोरड़ा हाथ म्है करड़ा
भाभी ख़ूब धमाल नचावैं
फागण की पणवासी के दिन।

होली की आग तै सबके
सारे दु:ख जल जावैं
धुलेंड़ी के रंग-पाणी तै
रह मन म्है मैल ना पावै
फागण की पणवासी के दिन

होली-धुलेंड़ी त्यौहार गजब
दिन भागां आले नै आवैं
इसनै उसनै सबनै बुला ल्यो
'दिनेश' रंगां म्है रंगणा चावै
फागण की पणवासी के दिन