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हर किसी के लिए / राकेश कुमार
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नीर, धरती, गगन हर किसी के लिए।
नित्य बहता पवन हर किसी के लिए।
हैं खिले फूल बनकर उन्हीं की दुआ,
पेड़-पौधे चमन हर किसी के लिए ।
रक्त बनकर बहे सब उन्हीं की कृपा,
है दिलों में सुखन हर किसी के लिए।
घूमती है धरा दिन निकलता यहाँ,
रात में है शयन हर किसी के लिए।
जाति कोई रहे, धर्म कोई रहे,
प्रेम का है चलन हर किसी के लिए।
दे रहा है वही ज्ञान संसार को,
संत का कर सृजन हर किसी के लिए।
एक मालिक वही शेष सब दास हैं,
अंत में है कफन हर किसी के लिए ।