भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शारदे भर गात में दे / राकेश कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:52, 16 फ़रवरी 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शारदे भर गात में दे शक्ति वृष बल के समान ।
खींच पाऊँ ज़िन्दगी को काँध पर हल के समान ।

लौट कर आऊँ कभी करके ज़रा दो चार काम,
प्यार मिल जाये किसी का नाद में जल के समान ।

खा रहे भूसा वही जो मानते कानून आज,
तोड़ने वाले उड़ाते घास मखमल के समान ।

जो नहीं करता उसे सब छोड़ते नाकाम बोल,
और जो करता उसी को कूटते खल के समान ।

जोतता है खेत को तबतक यहाँ जीवंत बैल,
गल न जायें हड्डियाँ जबतक पके फल के समान ।