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किताब / गायत्रीबाला पंडा / राजेन्द्र प्रसाद मिश्र

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एक किताब-सी
वह खुलती है, बन्द होती है
पुरुष की इच्छा से ।

एक किताब की तरह
उसके हर पन्ने पर
नज़र डालता है पुरुष
और जहाँ मन करता है वहाँ ठहरकर
बड़े ध्यान से पढ़ता है।

छक जाने और थक जाने पर
उसे दरकिनार कर देता है एक कोने में
और खर्राटे भरने लगता है

तृप्ति से ।