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भाषा / अनिल चावड़ा / मालिनी गौतम

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आकाश में ऊँचाई पर उड़ता बाज़
पल भर में तय कर लेता है मीलों की दूरी
पंख फैलाकर
सात समुन्दर पार फटाफट पहुँच जाता है
मनचाही जगह पर ।

लेकिन मेरी भाषा तो चिड़िया है !
चीं चीं चीं करते हुए
बमुश्किल पहुँच पाती है घर की छत तक
ये कैसे पार कर सकती है सात समुन्दर
और पहुँच सकती है 'हाय', 'हेलो' का घोंसला बनाने वालों के देश में ?

‘आई एम प्राउड ऑफ माय लैंग्वेज एण्ड माय लिट्रेचर’
इस भारी-भरकम वाक्य के नीचे
दब चुका है मेरा कमज़ोर वाक्य
‘मुझे मेरी भाषा के प्रति गर्व है’
स्कूल में किसी दुबले-पतले लड़के को
कोई मोटा लड़का दबा डाले
और दुबला-पतला लड़का कराहता रहे
बस, वैसे ही कराहता है मेरा वाक्य...

हाँ, दो-चार लोग लाए थे मेरी भाषा को
संस्कृति के जंग लगे पिंजरे में बन्द करके
पर पिंजरे से उसे बाहर निकालते, तब न !
चिड़िया तो पिंजरे में ही चीं चीं चीं करती रहती है ।
लेकिन 'चीप', 'चीप' या 'चियर अप', 'चियर अप'
सुनने के आदी कान
भला, कैसे सुन पाएँगे चिड़िया की चीं-चीं ?

ग़लती से एक बार पिंजरा खुला रह गया
पर चिड़िया को पिंजरे की आदत पड़ गई है
अब वह बाहर नहीं निकलती
मुझे नहीं पता कि चिड़िया कहाँ है
कहीं वह आपके घर में तो नहीं है न ?

चीं चीं चीं का तिनका चोंच में दबाए
छत तक उड़ने के लिए पंख फैलाती चिड़िया
कभी-कभार पंखे से, सॉरी 'फेन’ से टकराने पर
लहूलुहान होकर धप्प से नीचे गिर जाती है
बचपन में हम इसी तरह नीचे गिरी हुई चिड़ियों पर
लाल रंग का निशान लगाकर उड़ा देते थे
और फिर सबसे कहते थे —
"देखो इस चिड़िया को मैंने बचाया था..."
भाषा की ज़मीन पर ज़ख्मी पड़ी हुई
इस चिड़िया पर यह लाल निशान कौन लगाएगा ?

मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : मालिनी गौतम