भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डरो, किससे / अलीम किशोकफ़ / वरयाम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:26, 9 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलीम किशोकफ़ |अनुवादक=वरयाम सिंह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
डरो नहीं, औरत के आँसुओं से,
डरो नहीं, उसकी डाँट से ।
डरो नहीं, अपनी ख़ाली जेब से,
डरो नहीं, ब्राह्मण के शाप से ।
डरो नहीं, दुश्मन की धमकियों से,
डरो नहीं, दोस्तों के धोखे से,
डरो नहीं, ईर्ष्या - प्रेम से ।
पर डरो झूठ की उस राह से
माना हो सच तुमने जिसे ।
रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह