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चच्चा चल बसे / नेहा नरुका

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ज़िन्दगी के अन्तिम मोड़ पर ऐसा क्या हुआ
चच्चा ने छलांग लगा दी कुएँ के भीतर

नहीं सोचा अपने बेटे-बेटियों और नाती-पोतों के बारे में
ज़रा भी
भूल गए पत्नी को
कुछ साल पहले
जिसे मौत के मुँह से खींचकर लाए थे चच्चा

कहते हैं, सब ठीक था
बस…
बुढ़ापे में गड़बड़ा गई थी उनकी मानसिक स्थिति

बड़ी बहू आग लगाकर मर गई
मँझली बेटी का पति ब्याह में ही मर गया
बड़ी का कुछ साल बाद
दो पोतियाँ ब्याह होते ही
पेट से हुई
फिर बारी-बारी से मर गईं
(या मार दी गईं)

और भी न जाने क्या-क्या देख चुके थे चच्चा
पर नहीं हुए थे पागल
वैसे ही चलते थे
वैसे ही खाते थे
वैसे ही बोलते थे
अपनी दबंगई में
रहते थे हरदम

कभी साग
कभी गन्ना
कभी बेर

चच्चा का अपना एक लोक इतिहास था
चर्चे थे असफेर के गाँवों में
पिछले एक-दो सालों से
हर वक्त बरबराते थे
उनके पोपले मुँह पर लगा रहता था गालियों का अम्बार

जिसके पास बैठ जाते
उसे कोई काम-धाम न करने देते
पीठ पीछे सब कहते
चच्चा सिधार जाएँ स्वर्ग

मालूम नहीं उस वक़्त
क्या आया होगा उनके दिमाग में
बस, निर्णय लिया
कूद गए
और चल बसे !