भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यादों के रजनीगंधा (कविता) / संतोष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 22 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे लिए
बहुत कठिन हो जाता है
उन रास्तों पर चलना
जहाँ तुमने
अपनी यादों के रजनीगंधा
रोपे थे और कहा था

मैं अपने प्रेम को
तुम्हारी कलाई पर
ताबीज की तरह बाँध दूँगा
तुम बची रहोगी
हर बुरी नज़र से
देखो तुम्हारी पाजेब को
छू लेने को
कैसी उतावली हो रही हैं लहरें
कि अपनी गर्जना को
बदल लें रुनझुन में
सुना दें भीगा-सा राग
जी उठे समंदर
कहा था तुमने

वह मीठी आग
जिसकी पीली रोशनी में
हमने लिखे थे प्रेम गीत
वे प्रेम गीत
ठीक उन्हीं रास्तों पर
मेरे कदमों से
लिपट लिपट जाते हैं

जिंदगी वहीं ख़ामोश
खड़ी रह जाती है
और दूर धरती की धुरी पर
कालचक्र घूमता रहता है
कठिन हो जाता है समय
यादों के पाश में