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धूल की जिंदादिली / संतोष श्रीवास्तव
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धूल से उठती है
सौंधी-सी महक
कर रही भीगा इशारा
बारिशों का
थी हवाओं की चुहल में
आम ,महुआ ,रातरानी
सरसराने की
मन में घिर आई थी
यादों की कसक
वक्त की आंधी जिसे
ले उड़ी थी दूर तक
मैं जिसे समझी थी
मिट्टी!
धूल की पुरजोर आदत
देखकर हैरां हूँ
जिंदादिली उसकी
कल तलक आतुर थी
माथा चूमने
आज सजदा कर रही
पैरों से लिपट