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आकाश और समुद्र / कंसतन्तीन फ़ोफ़अनफ़ / अनिल जनविजय

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आकाश हो तुम काला, पड़े सूरज की छाया
मैं हूँ समुद्र अन्धेरा, इस पर नज़र रखता
लिटाई जाती गीली क़ब्रों में मृतकों की काया
दफ़नाता उनमें तेरी रोशनी, मिट्टी से ढकता

पर सुबह-सवेरे गर तुम रक्ताभ रहे होंगे,
तो शृंगार करना पड़ेगा तुमको फिर भोर ।
मोतियों की माँ से ही लहरें मुझे मिली होंगी,
औ’ फ़िरोज़ी रंग मेरा आपसी समझ का ज़ोर ।

और गर तुम एक रूखे बादल होंगे, हुज़ूर !
नीली भौंह पर बल पड़े हैं, गुस्से में हो चूर ।
तो मैं उठाऊँगा लहर अपनी एक सैलाबी,
फिर आ मिलूँगा तेरे उस तूफ़ान से ख़िताबी ।

मूल रूसी भाषा से अनउवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए
            Константин Фофанов
                  Небо и море

Ты — небо темное в светилах,
Я — море темное. Взгляни:
Как мертвецов в сырых могилах,
Я хороню твои огни.

Но если ты румяным утром
Опять окрасишься в зарю, —
Я эти волны перламутром
И бирюзою озарю;

И если ты суровой тучей
Нахмуришь гневную лазурь, —
Я подыму свой вал кипучий
И понесусь навстречу бурь…