Last modified on 29 मार्च 2025, at 06:26

हलो / नाज़िम हिक़मत / मनोज पटेल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:26, 29 मार्च 2025 का अवतरण ('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=मनोज पटेल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

{KKGlobal}}

कैसी ख़ुशक़िस्मती है, नाज़िम !
कि सरेआम और बेधड़क
तुम ’हलो’ कह सकते हो
तहे दिल से !

साल है १९४०
महीना जुलाई का
दिन, महीने का पहला बृहस्पतिवार
समय, सुबह के नौ बजे

इतनी ही तफ़सील से तारीख़ दर्ज करो अपनी चिट्ठियों में
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं
                      कि दिन, महीने और घण्टे
                      बहुत कुछ कहते हैं

हलो, हर किसी को !

एक बड़ा, भरा-पूरा और सम्पूर्ण
’हलो’ कहना
और फिर बिना अपना वाक्य ख़त्म किए,
                      ख़ुश और शरारतभरी मुस्कुराहट के साथ
                      तुम्हें देखना
                      और आँख मारना ...

हम इतने अच्छे दोस्त हैं
                      कि समझ लेते हैं एक-दूसरे को
                      बिना एक भी लफ़्ज़ बोले या लिखे ...

हलो, हर किसी को,
हलो, आप सभी को ...!
                       
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल