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भटक रहा है जंगल / संतोष श्रीवास्तव

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जंगल उदास है
सिकुड़ गई है झील
अठखेलियाँ करती लहरें
समा गई हैं पाताल में

अपने पपड़ाये किनारों पर
चुल्लू भर पानी में
डूब मरने को
विवश है नदियाँ

इस बार पलाश के
फूलने की चर्चा
जंगल ने नहीं सुनी
न कोयल कूकने की
न मंजरी महकने की

हताश ,निराश जंगल
खोज रहा है ख़ुद को
हैरान-परेशान हो
कहीं रास्ता तो
नहीं भटक गया ??

यहाँ तो शहर घुस आया है
कहाँ है उसकी ज़मीन ??
कहाँ है पतझड़ से
झरे पत्तों का मर्मर शोर ??
वही तो लाता है बहारें

जंगल बचे खुचे
ठूँठ पेड़ों को लिए
प्रतीक्षारत है बहारों के लिए
जो ठिठकी खड़ी हैं
प्रदूषण की आँच से
भयभीत