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बस एक बिंदु / संतोष श्रीवास्तव

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अर्जुन के लिए
मछली की आँख थी
वह बिंदु
जिसे भेद
जीतना था स्वयंवर
पाना था द्रौपदी को
किंतु वह
मान नहीं रख पाया
बिंदु का
अपनी जीत बाँट दी
बिना द्रौपदी से पूछे
यही कारण था
भटकाव का, रक्तपात का ,
अन्याय, झूठ और छल का

बिंदु है वह केंद्र
जिसमें है समाहित
भावनाएँ, कल्पनाएँ
ग्रह -उपग्रह ,चांद -तारे
उसी से गणना में आते

नाद, शब्द, प्राण, मन
चेतना, संवेदना
बिंदु से पहचान पाते
है चराचर जगत के केंद्र में
बस एक बिंदु