Last modified on 30 मार्च 2025, at 22:53

दुख की जड़ में था प्रेम / कुंदन सिद्धार्थ

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 30 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जो पा लिया, वह नहीं
जो पा न सके, वह दुख था

जो कह दिया, वह नहीं
अनकहा जो रह गया, वह दुख था

जो जी लिया, वह नहीं
जो बाक़ी रहा अनजिया, वह दुख था

दुख की जड़ में था प्रेम

जब भी दुख ने घेरा, प्रेम में घेरा
जब भी दुख ने रौंदा, हम प्रेम में थे

प्रेम हमारे लिए था
प्रथम और अंतिम शरणस्थल

न हम प्रेम छोड़ सकते थे
न हम छोड़ सकते थे दुख