भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पोथी-पत्रा लेकर / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:50, 19 अप्रैल 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लम्बा तिलक लगाकर माथे
बैठे पण्डित घासीराम,
बिना दक्षिणा पाए इनका
कभी नहीं चल सकता काम ।

छप्पन झ्ञ्च तोन्द का घेरा,
गुब्बारे से फूले गाल,
हाथी जैसे झूमा करते,
गैण्डे की है इनकी खाल ।

पोथी-पत्रा लेकर अपना
शाम - सवेरे जाते घाट,
चौकी ऊपर जोहा करते
अपने जजमानों की बाट ।

मूरख चेलों को फुसलाकर
लेते धन, पाते आनन्द,
दही - मलाई, चाट -मिठाई
इनको आते बहुत पसन्द ।