भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजकाज / वीरेन्द्र वत्स

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 8 जून 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र वत्स |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजब नेता, अजब अफसर
तरक्की का अजब खाका
इन्हें ठेका, उन्हें पट्टा
यहाँ चोरी, वहाँ डाका
 
बजट जितना, घोटाला कर गए उससे कहीं ज्यादा
गया जो जेल प्यादा था
बचे बेदाग फिर आका
 
मिली है जीत कुनबे को बधाई हो-बधाई हो
जियो भैया, जियो बाबू
जियो लल्ला, जियो काका
 
हुकूमत क्या मिली, सारा खजाना अब इन्हीं का है
बिकी मिट्टी, बिका पानी
बिका नुक्कड़, बिका नाका
 
जमाना बाहुबलियों का, रखा कानून ठेंगे पर
कहीं लाठी कहीं गोली
कहीं कट्टा कहीं बाँका
 
वहाँ तो महफ़िलों का दौर है, प्याले छलकते हैं
यहाँ है टीस, लाचारी
सुबह से रात तक फाका