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रसिक सुंदर साँवरे / भव्य भसीन

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रसिक सुंदर साँवरे,
प्रिय प्राण प्रेष्ठ कृपामय।
सरस वपु अरुणिम अधर,
कोमल कपोल अरु कर कमल।
गोपी वंदित प्रभु चरण,
नूपुर नील कुंडल श्रवण ।
चारु चंदन भाल सोहे,
नासिकाग्र मोती मोहे।
करे वेणु अधर संग,
पीत पट घनश्याम अंग।
अलक काली देख वा की,
तिरछी चितवन भृकुट बांकी।
ललित सुंदर नाथ त्रिभंगी,
दरस दो मम प्रिय अनुषंगी।