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मैं और तुम / भव्य भसीन

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मैं पुष्प माल तव हृदय विराजूँ।
मैं पीत दाम श्यामल पर नाचूँ।
मैं मोर पँख शीश पर धारण।
मैं राधा नाम तुम करो उच्चारण।

मैं वंशी काठ तुम स्वर भरते हो।
मैं ब्रज की नार तुम स्नेह करते हो।
मैं रज तुम्हारे चरण की दासी।
मैं शरद रात्रि तुम चंद्र उद्भासी।

मैं चंदन पुनीत मस्तक धरते हो।
मैं मधु माखन तुम मुख भरते हो।
मैं प्रेम दान तुम देनहारा।
मैं शंभू नाथ नित प्रेम तुम्हारा।

मैं अञ्जन नयन शृंगार पूरक।
मैं वर्षा तुम मदमत्त मयुरक।
मैं धूप दीप नंदलाल अर्चित।
मैं राग नव तुम प्रेम रंजित।
मैं राग नव तुम प्रेम रंजित ॥