भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ / चन्द्र गुरुङ

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 15 जून 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र गुरुङ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोदी में
उछलते
खेलते
नाचते
गाते
गया हुआ दरिया
जब बरसात बन कर वापस आता है
मुस्कुराती है धरती फूल की तरह
 
जिस तरह मैं
दूर देश से घर लौटता हूँ
दमक उठता है
मेरी माँ का चेहरा।