भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

युद्ध / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:48, 9 जुलाई 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी-कभी अनिवार्य हो जाता है युद्ध ।
 
जब शान्तिपूर्ण प्रतिरोध से काम नहीं चलता
जब सत्ता का दमन बढ़ जाता है इतना ज़्यादा
कि उसके अत्याचार सहने हो जाते हैं कठिन

जब सत्ताधारी हो जाते हैं जनविरोधी
किसानों के ख़िलाफ़,
मज़दूरों के ख़िलाफ़ नीतियाँ बनाते हैं
ग़रीब को और ग़रीब
और अमीर को और ज़्यादा अमीर बनाते हैं
सर्वहारा को लूटते है,
छीनते हैं जनता का अमन-चैन
तब युद्ध अनिवार्य हो जाता है सत्ता के ख़िलाफ़ ।
  
जब दुश्मन अपनी तलवार लहराता है
अपनी ताक़त दिखाता है
रोज़-रोज़ आपको, आपके परिवार को,
आपके अड़ोसी-पड़ोसियों को,
आपके संगी साथियों को
आपके हमवतनों को
डराता-धमकाता है

उनको करता है घायल
उनकी लाशें गिराता है
इस तरह आपको ललकारता है
तब युद्ध अनिवार्य हो जाता है उसके ख़िलाफ़ ।

दुनिया में जब-जब अन्याय हुआ है
युद्ध का सूत्रपात हुआ है
क्योंकि युद्ध अन्याय के ख़िलाफ़
न्याय की स्थापना का एकमात्र रास्ता है ।