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तुम्हारा होना-2 / जितेन्द्र श्रीवास्तव
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तुम कभी नहीं रहती
मुझ से दूर
यह निरभ्र आकाश
गवाह है
इस बात का
तुम रहती हो
मुझ में
गहरे बहुत गहरे कहीं
मेरी आत्मा के रस में घुली हुई
जीवन-रस की तरह