भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे कृष्ण मुरारी / निहालचंद

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:20, 16 जुलाई 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निहालचंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHaryana...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे कृष्ण मुरारी, जनहितकारी, लियो हमारी, सुध भगवान ।
हे जगतारण, कष्ट निवारण, दुष्ट संहारण, हे बलवान ।
हे जगदीश्वर, सबके ईश्वर, धरैं मुनीश्वर, तेरा ध्यान ।
हे गणनायक, विघ्न नशायक, भगत सहायक, कृपा निधान ।
कहैं निहालचन्द, भाषा के छंद, सूँ मूर्ख मतिमन्द, दियो प्रभु ज्ञान ॥

कृष्ण मुरारी, जनहितकारी, लियो हमारी, सुध भगवान ॥टेक॥
टूट्टूँ लकड़ी की ज्यूँ घुन कै, कोल्ले हो ज्याँगे जलभुन कै,
सुन कै मन भरग्या था, दिल डरग्या था,
करग्या था, वह पहल्याएँ एलान ।1।

जात बीर तासीर नर्म सी, कदे टूटज्या ना मेरी क़लम सी,
सिरसम-सी फूल रही, सन्देह मैं झूल रही, भूल रही, मैं सारे ओसान ।2।

ना मेरे पास सास के जाए, दुष्ट करैगा वह मन के चाए,
हाए-घर घल ज्याँगे, खम्भ हिल ज्याँगे, मिल ज्याँगे, धरती आसमान ।3।

निहालचन्द कहैं हे धरनीधर, रच दिए तुमनै जीव चराचर,
तरवर-परवर विधि श्रीपति हर
वेद शास्त्र कहैं पुरान ।4।