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मन्नू समझदार हो गया है / अशोक अंजुम

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मम्मी-डैडी
कहते-कहते थक गये
तब न माना था
लेकिन अब
उसने गली के गन्दे
‘नीची जाति’ के बच्चों के साथ
खेलना बन्द कर दिया है
मन्नू समझदार हो गया है!

चुपचाप निकाल लेता है
गुल्लक में से पैसे
ऊँचे ब्रेकेट पर रखी मिठाई
चट कर जाता है
सबकी नज़र बचाकर
पकड़ में नहीं आता
पूछने पर
थोप देता है सारा दोष
बिल्ली या
कभी नौकरानी पर
बड़ी सफ़ाई के साथ
डाँट खाती है रामप्यारी
न...ना,
मन्नू ऐसा काम नहीं कर सकता!’’
मम्मी-डैडी ख़ुश हैं
मन्नू समझदार हो गया है!