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प्रतीक्षा के आलोक में/पूनम चौधरी / पूनम चौधरी

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जो सामने है —
उसे स्वीकारो पूरे मन से,
मानो वह कोई ऋतु हो
जो केवल तुम्हारे लिए ठहरी हो, क्षण भर को।

जिससे अभी तुम मिल रहे हो,
उसके भीतर छिपे समय को पहचानो —
क्योंकि हर मुस्कान, हर दृष्टि,
कभी दोहराई नहीं जा सकती
उसी रूप, उसी गहराई में।

जो विदा चाहता है —
उसे मोह के पाश में मत जकड़ो,
बस इतना भर करो
कि तुम्हारे मौन में उसे आदर मिले,
और विदा में — सुखद स्मृति।

प्रस्थान कोई अंत नहीं,
यह वह सेतु है
जिस पर बीते क्षणों की छाया
धीरे-धीरे उतरती है।

जो आने वाला है —
वह तुम्हारे जीवन की अगली साँझ है।
उसे अधीर होकर मत बुलाओ,
बल्कि अपने भीतर एक शांत दीपक जलाओ,
ताकि वह राह भूल न जाए।

हर मिलन में एक संभावित
प्रस्थान
 छिपा होता है,
और हर बिछोह
में प्रछन्न है
 पुनर्मिलन की आस

इसलिए जियो जीवन —
प्रतीक्षा, स्वीकृति और विदाई
तीनों के बीच
मिठास के साथ।

क्योंकि समय
नहीं देता संकेत
कि कौन-सा आलिंगन
होगा अंतिम,
अथवा
कौन-सी विदाई
सिर्फ एक बार की होगी।

जो निकट है —
उसे नेह दो।

जो जा रहा है —
उसे आशीष।

जो आने वाला है —
उसके लिए
अपने हृदय में
एक नया स्थान बनाओ।

क्योंकि जीवन
सिर्फ मिलन और बिछोह का क्रम नहीं,
एक अद्भुत तपस्या है —
हर क्षण को पूर्णता में जीने की।
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