भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहुत देर डूबा-उतराया / शुभम श्रीवास्तव ओम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:50, 3 अगस्त 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभम श्रीवास्तव ओम |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत देर डूबा-उतराया
मन में कोई मन का कोना ।
सोख रही चिमनी सोंधापन
फीके कप बासी गर्माहट,
डाइनिंग टेबल रोज़ देखता
है यह आपस की टकराहट,
हर रिश्ते को डीठ लगी है,
सपनों पर मुँहबंदी टोना ।
बाँह थामती इक टहनी को
झूठे वादों से फुसलाकर,
दिन की अपनी दिनचर्या है
घर से दफ़्तर, दफ़्तर से घर,
बूढ़े बादल की लाचारी,
कितना मुश्किल बादल होना ।