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बहुत देर डूबा-उतराया / शुभम श्रीवास्तव ओम

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बहुत देर डूबा-उतराया
मन में कोई मन का कोना ।

सोख रही चिमनी सोंधापन
फीके कप बासी गर्माहट,
डाइनिंग टेबल रोज़ देखता
है यह आपस की टकराहट,

हर रिश्ते को डीठ लगी है,
सपनों पर मुँहबंदी टोना ।

बाँह थामती इक टहनी को
झूठे वादों से फुसलाकर,
दिन की अपनी दिनचर्या है
घर से दफ़्तर, दफ़्तर से घर,

बूढ़े बादल की लाचारी,
कितना मुश्किल बादल होना ।