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पन्द्रह हाइकु / योसा बुसोन / देवेश पथ सारिया

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मील का पत्थर बदला है 
इस घुमक्कड़ी में तैंतीस बार
मंदिर की ज़मीन पर पाला पड़ा है 



पीअनी फूल की पंखुड़ियां 
हौले से बिखर जाती हैं 
दो-तीन के झुंड में इकट्ठी हो जाती हैं 



वेधती हुई सर्दी
मेरी मृत पत्नी के कंघे पर पड़ती है 
हमारे शयनकक्ष में 



मनुष्यों की इस दुनिया में 
लौकी ने बना ही ली
अपनी एक जगह 



भिक्षु ख़ुशी से 
खा रहा है 
खमीरीकृत बीन मिसो सूप 



हालात हैं यूँ
मैं अकेला हूँ
दोस्ती करता हूँ चाँद से



कोई कनटोप पहनकर गुज़रा है 
अपने ही अँधेरे में 
नहीं देख पाया पूर्ण चंद्रमा को 



शीत ऋतु की हवा 
कंकड़ों को उछालती है 
मंदिर की घंटी पर 



सर्दियों का यह तूफान 
भागते हुए पानी की आवाज़
चट्टानों को चीरती हुई 



पहली बरसात गिरती है 
और फिर पिघल जाती है 
घास पर ओस बनकर



पहली बर्फ़बारी
टकराती है सबसे निचले डंठलों से
बाँसों में अटका है चाँद



बर्फ़ के नीचे चटकती है एक डाल
मैं जाग जाता हूँ
योशिनो में चेरी के फूलों के स्वप्न से



शरद ऋतु की शाम
मैं महसूस करता हूँ 
पिछले साल से ज़्यादा अकेला 


 
माँ-बाबा
बार-बार करता हूँ उन्हें याद
शरद ऋतु के अंत में 



वसंती समुद्र 
सारा दिन उभरता है, गिरता है
उभरता है, गिरता है

अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया