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क्षणभंगुरता / पूनम चौधरी

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लोग कहते हैं—
जीवन छोटा है।
पर देखो!
इस नील गगन-सा वह अनंत है—
हर क्षण
अपने लिए माँगता है
एक नया अर्थ,
एक नई ज्योति।

फूल का मुरझाना ही
उसकी सुवास का मूल्य है।
प्यास ही तो है
जो जल को मधुर बनाती है।
पतझर की तपस्या बिना
कहाँ संभव है
बसंत का उल्लास?

क्षणभंगुरता—
यह भय नहीं,
यह तो जीवन का मधुर संगीत है—
लहर-सा उठता,
फिर विलीन होता,
और पुनः जन्म लेता।

मृत्यु—
भय नहीं,
 गति है
संतुलन है
जो जीवन को गंभीरता देती है।
जाने वाला अमर नहीं होता,
पर उसकी स्मृति
समय के क्षणों में
अनन्त का स्पर्श जगाती है।

हमारे पास जो शेष है—
वह केवल यही है।
 हम बचा सकते हैं,
बस यही एक बात
हर क्षण में
जागरूक उपस्थिति।

तो जियो—
जैसे सरिता बहती है
गगन की ओर निहारते हुए,
जैसे फूल
क्षण भर की धूप में भी
अपना रंग लुटा देता है।
 वैसे ही हमें जीना है
 जीवन की धारा में अपने को सौंपते हुए।

क्षणभंगुरता—
अभिशाप नहीं है,
वह हमें
हर क्षण का योद्धा बनाती है।
 वही एकमात्र शाश्वतता है,
 जिसे हम स्वीकार कर मुक्त हो सकते है।
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