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जीने को कुछ मानी दे / चन्द्र त्रिखा

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जीने को कुछ मानी दे
ऐसी एक कहानी दे

सात समन्दर लेकर आ
प्यासा हूँ कुछ पानी दे

धूप अभी तक नंगी है
इसको चूनर धानी दे

भीगा है मन आएगा
कोई गज़ल पुरानी दे

दे कुछ तू रब्ब जैसा है
लम्हें कुछ तूफानी दे