भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निपट अजनबी से लगते हैं / चन्द्र त्रिखा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 18 अगस्त 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र त्रिखा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
निपट अजनबी से लगते हैं ये जाने पहचाने लोग
लेकिन दिल के पास लगे हैं अक्सर कुछ बेगाने लोग
दर्द की झीलें बदल गई हैं पथरीली चट्टानों में
दिल तो वादा-माफ गवाह है इतनी बात न माने लोग
जिंदादिल इंसान जिदंगी जीने का हक़ रखते हैं
बार-बार यह कह कर ख़ुद को लगते हैं भटकाने लोग
घर-घर अलख जगा कर ईसा सबसे सूली मांग रहा है
फिर कैसी घबराहट, क्यों कर लगते हैं कतराने लोग
सुनते हैं कल रात किसी ने हत्या कर दी सूरज की
सारा शहर फ़रार हुआ बस शेष रहे दीवाने लोग