भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात मेहमान बना याद का सहरा / चन्द्र त्रिखा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 18 अगस्त 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र त्रिखा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात मेहमान बना याद का सहरा कोई
जैसे पर्वत से उतर आया हो दरिया कोई

हम से सपनों के फटे वस्त्र उतारे न गए
वैसे सूरज ने किया कुछ तो था चर्चा कोई

जिंदगी सर्द हक़ीक़त है बुरा मत मानो
भोग कर देख तो लो दर्द का लम्हा कोई

आप चाहें तो किनारों पर भी जी सकते हैं
छेड़ कर बहस का मुद्दा यूं ही गहरा कोई

आप किस शख़्स की अब खोज में यूं गुमसुम हैं
भीड़ तो रोज़ कुचल डाले हैं चेहरा कोई