है प्रतीक्षा आज भी / विनीत पाण्डेय
उदित फ़िर से रवि हुआ है सांझ फ़िर ढल जायेगा
है प्रतीक्षा आज भी उत्तर तुम्हारा आएगा
द्रवित हो कर लेखनी से भावना की
अश्रु से अपने ह्रदय पर ही लिखा
और प्रेषित कर दिया तुमको उसी क्षण
क्या समर्पण कुछ नहीं तुमको दिखा ?
या कि मेरा पत्र ही पहुँचा नहीं ?
प्रश्न के हैं तार उलझे कौन ये सुलझाएगा ?
है प्रतीक्षा आज भी उत्तर तुम्हारा आएगा
हाँ सही है भाव है ये क्षोभ का,
पर प्रीत के सब गीत भी तुम पर लिखे
मन ये क्या है भाव का है पुंज भर
मूल में इस पुंज के तुम ही दिखे
भाव सारे व्यक्त भी किससे करूँ ?
छोड़ कर तुमको समझ भी कौन इसको पायेगा
है प्रतीक्षा आज भी उत्तर तुम्हारा आएगा
इस प्रतीक्षा का हर एक क्षण कल्प है
व्यग्रता का ज्वार उंचा हो रहा
चल रहा है अपनी गति से तो समय
और ये भारी भी समूचा हो रहा
क्या परीक्षा हो रही है प्रीत की
है समझ से कुछ परे तो कौन फ़िर समझाएगा
है प्रतीक्षा आज भी उत्तर तुम्हारा आएगा
अंक पाने की रही कब लालसा भी
या त्याग कर सब कर्म मुझको ही गहो
प्रेम में क्या माँगना अपराध है ?
है तो फ़िर क्या दंड है ये भी कहो ?
मात्र क्या स्वीकार लेना भी कठिन है ?
यदि कठिन है कौन इसको सुगम भी बनाएगा
है प्रतीक्षा आज भी उत्तर तुम्हारा आएगा