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बोलो, तुम क्या लोगे / विनीत पाण्डेय

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मेरी झोली में सब कुछ है, बोलो, तुम क्या लोगे ?

कोकिल का पंचम स्वर बुलबुल का दर्दीला गान
और मयूर का केका स्वर कौए की कर्कश तान
जिसमें हो संतुष्टि तुम्हारी मुझसे वह पा लोगे ।
मेरी झोली में सब कुछ है, बोलो, तुम क्या लोगे ?

मोती छोड़ कौड़ियाँ फूटीं तुमको लगी सुहाने
जठर अग्नि निकृष्ट विवश हो तुमको लगी सुनाने
चूल्हे की है ताप, ढलूँगा जैसा तुम ढालोगे ।
मेरी झोली में सब कुछ है, बोलो, तुम क्या लोगे ?

रस-रंग-गंध से युक्त पुष्प जब तुमको देने आया
हेय दृष्टि तब मिली तुम्हें बस क्षणिक रूप ही भाया
झरने का मीठा जल या फ़िर मृग मरीचिका लोगे ?
मेरी झोली में सब कुछ है, बोलो, तुम क्या लोगे ?

काव्य लता की श्वास नली पर तुमने पाँव धरे हैं
तुम से सिंचित होकर ही सब खर-पतवार हरे हैं
चयन तुम्हें करना है तुम कैसा,और कितना लोगे
मेरी झोली में सब कुछ है, बोलो, तुम क्या लोगे ?