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सूर्यकिरण और चन्द्रकिरण / सूर्यकुमार पांडेय

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शाम ढली, सूरज चन्दा दोनों संग पड़े दिखाई ।
सूर्यकिरण और चन्द्रकिरण, धरती पर मिलने आईं ।

सूर्यकिरण दिन की रानी थी, चन्द्रकिरण रातों की ।
बारह घण्टे बाद मिली थीं, झड़ी लगी बातों की ।
दोनों बातें करतीं जातीं कुछ झूठी, कुछ सच्ची ।
सूर्यकिरण में ऐंठ बहुत थी, चन्द्रकिरण थी बच्ची ।
एक ताप से भरी हुई थी, दूजी थी सुखदाई ।
सूर्यकिरण और चन्द्रकिरण धरती पर मिलने आईं ।

सूर्यकिरण बोली — मुझसे दिन में आता उजियारा ।
चन्द्रकिरण बोली — मैं रातों का हरती अंधियारा ।
सूर्यकिरण बोली — मेरी ऊर्जा से जीवन चलता ।
चन्द्रकिरण बोली — मुझसे जग को मिलती शीतलता ।
इतनी-सी थी बात; परस्पर दोनों ही टकराईं ।
सूर्यकिरण और चन्द्रकिरण धरती पर मिलने आईं ।

सूर्यकिरण कह उठी, अमावस को तुम नागा करती ।
चौदह दिन; आधा टाइम ड्यूटी से भागा करती ।
चन्द्रकिरण बोली, तुम भी क्या ही कुछ कम हो इसमें ।
जाड़े में कोहरे में ग़ायब, बादल में बारिश में ।
सूरज और चन्द्रमा ने दोनों में सुलह कराई ।
सूर्यकिरण और चन्द्रकिरण धरती पर मिलने आईं ।

चन्द्रकिरण हँस पड़ी चाँदनी लगी इधर फैलाने ।
सूर्यकिरण चल पड़ी, दूसरे देश सवेरा लाने ।
दोनों गले मिलीं आपस में, भूलीं वैर-लड़ाई ।
सुबह मिलेंगे कहकर बोलीं, अच्छा ! टाटा-बाई ।
सूरज और चन्द्रमा हँसते, धरती भी मुस्काई ।
सूर्यकिरण और चन्द्रकिरण धरती पर मिलने आईं ।