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हुलिया / येहूदा अमिख़ाई / विनोद दास

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मेरा हुलिया उस यहूदी पिता-सा है
जो बाज़ार से घर अपनी पीठ पर एक बोरा लादे हुए लौट रहा है ।

ज़नाना चड्ढी की महक से लबरेज़ अलमारी में
नर्म-नाजुक चीज़ों के बीच छिपी
मेरे पास एक रायफ़ल भी है ।
मैं अतीत का मारा और भविष्य का बीमार इनसान हूँ
मेरे वर्तमान में लगी हुई है आग ।

उसकी लाल आँखों में बुरी बलाओं के खिलाफ़ पहरेदारी
कोई काम की नहीं है,
मौत के खिलाफ़ भी बेकार की पहरेदारी है।
ज़ालिम खेल के गोश्त की तरह वह मीठे यहूदी गोश्त को देखता है ।

और दिन ढलने पर यहूदियों के दुखों पर उसे सुनाई देती हैं,
गिरजाघर की ख़ुशी से बजती घण्टियाँ ।

सुनाई देती है पहाड़ियों से आती हुई फ़ौजी मश्क की उदास आवाज़,
जिनकी तोपों में पहियों की ज़गह जड़ें हैं ।
और वह अपने जूतों और सूखे होंठों के लिए
ख़रीदता है क्रीम,
और अमन-चैन के लिए उसे चुपड़ लेता है ।

और उसके कोट में
दया-याचिका के दस्तावेज़ और मोहब्बतभरे ख़त होते हैं
और वह अतीत से भविष्य की राह पर तेजी से जानेवालों को देखता है ।

और रात में अकेले
जैम को धीरे-धीरे चारों तरफ़ चलाते हुए
उसे तब तक पकाता है ,
जब तक वह गाढ़ा न हो जाए,
यहूदी आँखों के पास उभरे गोल - गोल बुलबुलों की तरह
आनेवाली पीढ़ियों के लिए
सफ़ेद झाग सा
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अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास