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ये तुम्हारे अधर / अमरकांत कुमर

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ये तुम्हारे अधर की लालइयाँ और
ये हमारे गुलाबी से दिन
कुछ तो अनहोनी करेगे, देखना है
मंजरी की ख़ुश्बुएँ अनगिन॥

इन बसन्ती हवाओं में इन्द्रधनुषी गंध है
उपवनों की वीथियों मंे एक सधा अनुबंध है
अब न भूलेगा अहेरी उषा के पल-छिन॥ ये तुम्हारे...

साँझ स्लथ है गंध के बोझों को ढ़ो-ढ़ोकर
रोज रूठे, रोज़ टूटे प्यार के उलझन को रोकर
एक थकी-सी गंध लेटी हवा पर पट-बिन॥ ये तुम्हारे...

क्यो उसाँसें छोड़ती हैं उपवनों की डालियाँ
मस्त होकर झूमती है बाजरे की बालियाँ
क्या इधर से भी गई है यौवनी सापिन॥ ये तुम्हारे...

मैं निहारूँ रूप तेरा जल सरोवर में मगर
तुम न चाहे देख मुझको पास अपने भी अमर
तुम सलोनी शाम, मैं विधु-किरण-पोषित तृण॥ ये तुम्हारे...

कुछ जवानी आग लाती है भरी-सी ज़िन्दगी में
कुछ जवानी मुस्कुराती है तरी-सी ज़िन्दगी में
कुछ जवानी लुभाती है प्रीति से मसृण॥ ये तुम्हारे...