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हम तेरी याद में / अमरकांत कुमर

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हम तेरी याद में हैं जगे रातभर
छत पर आने में तुमको लगे रात भर॥

मैंने आवाज़ दी थी तुम्हें जाने-मन
तूने मुझको कोई सिरफिरा कह दिया,
हमने हौले से पूछा कहीं चलते हैं
तू ने ना कर मज़ा किरकिरा कर दिया,
बात इतनी-सी थी मुझको देरी हुई
अब मनाने में तुझको लगे रात भर॥ हम तेरी...

तेरे अंदाज़ में है शराबी नशा
तेरी आँखों में गहराई झीलों की है,
खूबसूरत तुम्हारा वदन चांद-सा
कुण्डलों की चमक ज्यों कंदीलों की है,
मैं हुआ जा रहा हूँ तुम्हीं पर फिदा
पास आने में मुझको लगे रात भर॥ हम तेरी...

अपना भी तो नसीबो-करम कम नहीं
तेरे जलवों की सोहरत बहुत जाने-मन,
प्यार में हौसला दो मुझे तुम जरा
तेरा एहसा न होगा बहुत जाने-मन,
तुम रहो सामने, मैं रहूँ देखता
ऐेसे मंज़र में हम-तुम जगें रात भरत॥ हम तेरी...

आदमी का ठिकाना क्या हो कब किसे
वक्त के हाथ की हम तो कठपुतलियाँ,
सावनी घन-घटा में चमकती हुई
प्यार तो है सुनहरी मगर बिजलियाँ,
जिन्दगी में इसे भी चमक जाने दो
घन-घटा-आने में भी लगे रात भर॥ हम तेरी...

प्यार का ही सफर, एक सच्चा सफर
बाकी सब झूठ है, खेल है जिंदगी,
प्यार पूजा है हम चाहने वालों की
प्यार है सृष्टि के हुस्न की बन्दगी,
फासले को चलो आज हम पाट दें
इस जगह आते-आते लगे रात भर॥ हम तेरी...