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लौट आओ/ प्रताप नारायण सिंह
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लौट आओ
इससे पहले कि
घर तक का रास्ता
तुम्हारे भीतर ही कहीं खो जाए;
दीवारें तुम्हारा चेहरा
पहचानना छोड़ दें,
और दरवाजे
तुम्हारे लिए अपरिचित हो जाएँ।
लौट आओ
इससे पहले कि तुम्हारी हँसी
केवल तस्वीरों में रह जाए,
और आँखों की चमक
किसी भटकी हुई रोशनी का अक्स बन जाए;
समय तुम्हारे घावों को भरने के बजाय
उन्हें गहरा करता चला जाए
और तुम दर्द की घाटी में
कराहते हुए दम तोड़ दो|
लौट आओ
क्योंकि कुछ लोग अब भी
तुम्हारा नाम धीरे से पुकारते हैं,
जैसे कोई प्रार्थना अधूरी रह गई हो।
इससे पहले कि वह पुकार
हवा में एक सरसराहट बनकर रह जाए
और कुछ समय बाद
सन्नाटे में बदल जाए
लौट आओ|