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आओ लिखें दीप / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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साथ सारे छोड़ देंगे मोड़ पर
एक तुम हो साथ यह विश्वास है।
हम अँधेरों से लड़ें, आगे बढ़ें
होगा उजेरा आज भी आस है।

आओ लिखें दीप नभ के भाल पर
अधर हँसे कि झरें पारिजात भी।
सुरभि में नहाकर हो पुलकित धरा
ओस भीगे सभी पुलकित पात भी।
 
बुहारता उदासियों की धूल को
थिरकता गली -गली में उजास है।
हम अँधेरों से लड़ें, आगे बढ़ें
होगा उजेरा आज भी आस है ।