भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताल भर सूरज / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 5 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह= }} <Poem> ताल भर सूरज-- बहुत ...)
ताल भर सूरज--
बहुत दिन के बाद देखा आज हमने
और चुपके से उठा लाए--
जाल भर सूरज!
दृष्टियों में बिम्ब भर आकाश--
छाती से लगाए
घाट
घास
पलाश!
तट पर खड़ी बेला
निर्वसन
चुपचाप
हाथों से झुकाए--
डाल भर सूरज!
ताल भर सूरज...!