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संवेदना के सीमान्तों में / शिवकुटी लाल वर्मा
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फटा हुआ
(किसी-के कलेजे-सा)
तो मैं था ही
जिसे किसी ने लेई लगाकर जोड़ दिया था
ऎसा चिपकाया था
कि हल्का-सा पानी या थूक लगने से भी खुल सकता था
जैसे-तैसे
मैं पहुँच ही गया था तुम्हारे पास तक
तुमने अपने सिले होंठों से मुझे खोला
और मैं खुल गया पूरा का पूरा
तुमने पत्र-सा मुझे पढ़ा
फिर उसी तरह मोड़ कर रख दिया
किताबों के ढेर के बीच
मैं फिर से खो गया
तुम्हारी संवेदना के सीमान्तों में
मेरे पाठक!