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जब हमें लगता है डर / संजय चतुर्वेदी
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जहाँ से निकलने में हमें डर लगता है
मुहल्ले के बच्चे वहाँ खेलते हैं फ़ुटबाल
जब झाड़ुओं पर बैठकर उड़ती हैं डाइनें
मैदानों में भूत-प्रेत जलाते हैं अलाव
क़ब्रिस्तान की तरफ़ से आती हैं आवाज़ें
जब गर्म रजाइयों के अन्दर गिरती है बर्फ़
और काँपते हैं लोगों के सपने
चार बजे
एक आदमी आता है पार्क में
सुबह की दौड़ लगाने।