भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब हमें लगता है डर / संजय चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 7 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहाँ से निकलने में हमें डर लगता है
मुहल्ले के बच्चे वहाँ खेलते हैं फ़ुटबाल

जब झाड़ुओं पर बैठकर उड़ती हैं डाइनें
मैदानों में भूत-प्रेत जलाते हैं अलाव
क़ब्रिस्तान की तरफ़ से आती हैं आवाज़ें
जब गर्म रजाइयों के अन्दर गिरती है बर्फ़
और काँपते हैं लोगों के सपने
चार बजे
एक आदमी आता है पार्क में
सुबह की दौड़ लगाने।