भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाई से भाई रूठा है / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 8 दिसम्बर 2008 का अवतरण
भाई से भाई रूठा है
घर कितना सूना लगता है
एक पुराने वक़्त का चेहरा
मेरी एलबम में रक्खा है
उसने पूछा आँख का आँसू
मैंने कहा कि सरमाया है
आज हवा सरशार हुई है
आज चराग़ों का जलसा है
कंगालों की इस बस्ती में
फेरी वाला कब आया है?
बकरे को मालूम है उसका
इन्सानों से क्या रिश्ता है
अब मैं इस माया को समझा
सुख के अन्दर दुख रहता है
रिश्ते छीन लिए टी.वी. ने,
मैं तन्हा, तू भी तन्हा है.