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हाथों में स्वतन्त्रता की तरह / संजय चतुर्वेदी
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चाहे वो घर में बन रही हो
या खुले मैदान में
या किसी बनती हुई इमारत के नीचे
पकते हुए आटे की महक
रास्ते रोक लेती है
ठग लेती है भरे पेट वालों को भी
भुला देती है फ़र्क अच्छे-बुरे का
औक़ात पर आ जाते हैं सारे ख़याल
रोटी हाथों में स्वतन्त्रता की तरह होती है
ख़ुश्क़िस्मत हैं वे
जिनका रास्ता रोटियाँ रोक लेती हैं।